बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र
प्रश्न- बौद्ध धर्म पर लेख प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
बौद्ध धर्म
भारतीय दर्शन में आत्मा को एक प्रमुख विषय माना गया है वेदों और उपनिषदों को लेकर प्रायः सभी भारतीयों ने आत्मा की व्याख्या की है। वेद उपनिषद् आत्मा को ब्रह्म का (रूप) अंश मानते हैं। जिसके कारण जीवन ब्रह्म में लीन हो जाता है जीवन का आदर्श मोक्ष प्राप्त करना है। चार्वाक दर्शन में भी आत्मा का अस्तित्व शरीर के साथ माना गया है शरीर ही आत्मा का दूसरा नाम है।
आत्म के सन्दर्भ में पाये जाने वाले बौद्ध विचार बिल्कुल अलग है इन्होंने आत्मा को केवल विज्ञानों का प्रवाह (Stream of consciousness) बताया गया है। जिसका स्वरूप अनित्य है इसलिए यह क्षणिवाद सिद्धान्त पर आधारित है।
आत्मा के स्वरूप को बताने में बुद्ध मौन हो जाते थे। शंकराचार्य के नीति, नेतिवाद की तरह से बुद्ध केवल यही बताते हैं कौन पदार्थ आत्मा नहीं है। अर्थात् यह आत्म नहीं है, वह आत्मा नहीं है। संसार के किसी पदार्थ में आत्मा नहीं है। दूसरी तरफ आत्मा के वास्तविक स्वरूप क्या हैं अथवा इसका ज्ञान कैसे किया जाता था इस प्रश्न पर बुद्ध केवल मौन व्रत (Silence) धारणा कर लेते थे। इस प्रकार कुछ व्यक्तियों के अनुसार, बौद्ध दर्शन में आत्मा को नहीं माना गया। इसी कारण अनात्मकवाद आत्मा का सिद्धान्त विकसित होता। परन्तु बुद्ध की चुप्पी साध लेना इस बात का पर्याय नहीं हो सकता कि बुद्ध आत्मा को नहीं मानते हैं। वे न तो आत्मा की सत्ता को स्वीकार करते थे और न ही निषेध करना चाहते थे।
एक बार एक परिव्राजक भिक्षु ने बुद्ध से पूछा हे पूज्य गौतम प्रकृति किस प्रकार स्थित है क्या आत्मा है इस प्रश्न को सुनकर बुद्ध मौन हो गये फिर उन्होंने दूसरा प्रश्न पूछा क्या आनात्म नहीं है इस पर भी बौद्ध भिक्षु चुप रहे फिर वह उठकर चला गया फिर उनके शिष्य आनन्द ने पूछा भगवान आपने परिव्राजक भिक्षु के प्रश्नों का उत्तर क्यों नही दिया? इस प्रश्न को सुनकर बुद्ध ने उत्तर दिया कि यदि आत्मा है तो इससे श्रमणों और ब्राह्मणों के सिद्धान्त का समर्थन होता जो स्थिरता में विश्वास करते हैं फिर उन्होंने कहा कि यदि मै यह कहता कि आत्मा नहीं है तब उन श्रमणों और ब्राह्मणों के सिद्धान्त का समर्थन होता है जो शून्यवाद को मानते हैं।
बुद्ध ने कभी जानबूझकर सत्य को ढकने को प्रयास नहीं किया नागार्जुन ने 'प्रज्ञापार मितासूत्र' पर की गई टीका से स्वीकार किया "बुद्ध कभी तो उपदेश देते हैं कि आत्मा का अस्तित्व है और कभी कहते थे कि आत्म का अस्तित्व नहीं है" आत्मा कोई नित्य पदार्थ नहीं है वह बहती हुई जलधारा के समान विज्ञान का एक प्रवाह है इसी कारण बौद्ध दर्शन में केवल निषेधात्मक स्वरूप को मानकर अनात्मवाद का सिद्धान्त विकसित किया गया।
बुद्ध के अनुसार, आत्मा में नित्यता या स्थिरता नहीं है वह तो केवल विज्ञानों का एक प्रवाह है, संसार में कुछ भी शाश्वत नहीं है इसी कारण आत्मा भी नित्य नहीं है। अगर बुद्ध की इस बात को मान लिया जाए तो पुनर्जन्म का सिद्धान्त सम्भव नहीं होता है। आत्मा चेतना की गतिशील अवस्था है। इसकी तुलना दीपक व नदी के वेग से की जाती है। जिस प्रकार पानी की स्थिरता भ्रम है उसी प्रकार आत्मा भी विभिन्न चेतन पूर्ण अवस्थाओं का एक समूह है।
बुद्ध भी आत्मा को नित्य नहीं कहकर उसके अस्तित्व को मानते हैं। उनके अनुसार अस्तित्ववान का अर्थ नित्य होना है। अस्तित्व की व्याख्या क्षणिकवाद के द्वारा होती है। वर्तमान अवस्था के लिए भूतकाल उत्तरदायी है व वर्तमान अवस्था से ही भविष्य का निर्माण होता है। ये सभी अवस्थाएँ तेजी से बदलती रहती हैं। बुद्ध दर्शन के अनुसार मनुष्य केवल एक समष्टि है उसका अपना कोई अस्तित्व नहीं है। जब मनुष्य का समूह टूट जाता है तो मनुष्य का अन्त या विनाश हो जाता है व आत्मा का भी विनाश हो जाता है आत्मा का कोई स्वतन्त्र व शाश्वत रूप नहीं है।
आत्मा केवल चेतना के विभिन्न प्रवाहों का संयुक्त नाम है अतः आत्मा को नित्य नहीं माना जा सकता आत्मा को जो व्यक्ति नित्य मानते हैं उनमें सांसारिक क्षणिक पदार्थों के प्रति आसक्ति पैदा होती है। आसक्ति दुःख को बढ़ावा देता है। अतः बुद्ध ने कहा, "किसी अदृष्ट, अश्रुत तथा कल्पित सुन्दर स्त्री से प्रेम रखना जिस तरह हास्याप्रद है उसी तरह अदृष्ट और अप्रमाणित आत्मा से प्रेम करना हास्याप्रद है।'
इस कथन के अनुसार, बुद्ध दर्शन में आत्मा को एक चेतना के प्रवाह के रूप में जाना जाता है चेतना का प्रवाह शीघ्रता से आगे बढ़ता है अतः लोग भ्रमवश से ही आत्मा कहते हैं परन्तु आत्मा का अस्तित्व क्षणिक है इसलिए लोग इस विचार को अनात्मवाद (non existence of soul) के नाम से जानते हैं।
बौद्ध दर्शन के अनुसार, बुद्ध का जीवन महानता का एक प्रतीक है बुद्ध धर्म में दो सम्प्रदाय हीनयान व महायान बन गये।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
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- प्रश्न- जैन धर्म पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जैन धर्म के पतन के कारण स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- जैन धर्म की शिक्षाएँ क्या थीं?
- प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
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- प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
- प्रश्न- जैन धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।
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- प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
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